क़ाज़ी वाजिद की कहानी- प्रेम कथा दादी अभी अचार डाल रही थीं कि वो आ निकली। वो दुविधा में पड़ गई कि वापस चली जाए या रूकी रहे। 'बैठ जाओ जमीला।'दादी ने कहा। 'कैसी हो?' जी अच्छी हूं वो वहीं बैठ गई, जहां खड़ी थी। कुछ देर के बाद दादी बोली, 'अब मैं अचार डालने लगी हूं, बुरा न मानना, नियत बुरी न हो, तब भी नज़र लगती है। पिछले दिनों रब्बो ने मुझे अचार डालते देखा, पूरा-का-पूरा फफूंदया गया। ... नज़र तो मेरी भी कभी-कभी लगती है बीबी जी! इससे पहले आपका एक ग्लास तोड़ चुकी हूं।' ...हां हां!'