जाबाला सी विवश वो औरत

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वही साप्ताहिक और वही वही डी फोर कोच और वही समय। अपने निर्धारित समय पर घर से निकलने का उपक्रम और ऑटो का इंतजार । यही तो होता है मेरा साप्ताहिक क्रम आज भी मैं यूं ही कुछ सोच रहा था यंत्रवत डी फोर कोच में जा पहुँचा और घुस गया । कोई खाली सीट देखने लगा ,मैं खाली सीट पर अपना बैग रखी रहा था कि अचानक मेरे पीछे से आवाज़ आई संदेश अंकल । आवाज को सुनकर मैं धीरे से पीछे मुड़ा तो जानी पहचानी सी लड़की बैठी थी। पहचानता तो था लेकिन उसका नाम याद नहीं आया था । उसने