आज सुबह-सुबह ही संदेश को न जाने क्या सूझी वह अपनी पुरानी डायरी लेकर बैठ गया था अपने लिए की पुरानी कविताएं गीत और ग़ज़लें देख खुद ही मुस्कुरा लेता और पन्ना पलट देता था । पुराने लम्हात जैसे जीवित हो उठे हों । डायरी में लिखे सतरंगी लम्हात जो कभी गुदगुदाते से, कभी हंसाते, कभी रुलाते से । इन्हीं में खोया संदेश आज पूरी तरह छुट्टी के मूड में था । बीते हुए लम्हे जीवित हो उठे थे । बस यूं ही पन्ने पलटते पलटते उसकी नज़र एक ग़ज़ल पर पड़ गई । पूरे दस बरस पहले लिखी थी ये