शर्माजी

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शर्माजी शर्माजी रोजना की दिनचर्या के अनुसार ही आज भी सुबह-सुबह घूमने निकले।वापस आते समय अचानक ही जाने उन्हें क्या सूझा; सामने वाले घर की तरफ रूख किया और घर के आंगन में खुले नल को उन्होंने बन्द कर दिया। नल से पानी बड़ी देर से बह रहा था और जब वापस आये तब भी बह रहा था। पानी बह-बह कर सड़क की देहरी भी पार कर चुका था। उस बहते पानी की तरह ही शर्माजी की सोच की सीमाएं भी देहरी बांधकर खयालों में विचरण करने लगी। तभी अन्दर से घर की बड़ी बहु आयी और बड़बड़ाती सी बोली