भाग -2 मैं सोचती कि क्या लड़की केवल पुरुषों के भोग लिए बनी, एक जीती-जागती मशीन भर है। घर बाहर कहीं भी, क्या वह निश्चिंत होकर नहीं जी सकती। ऐसे क्षणों में मुझे किशोरावस्था में घर पर बार-बार आने वाले अपने एक अंकल ज़रूर याद आते। जो किसी चर्च से जुड़े हुए थे। शौक़िया फ़ोटोग्राफ़र भी थे। कोई ख़ास काम-धाम नहीं करते थे, फिर भी न जाने कैसे उनके पास बहुत पैसा था। अपनी दोनों लड़कियों को अमरीका में पढ़ा रहे थे। जब भी आते तो मेरे लिए पेस्ट्री, कैडबरीज़ चॉकलेट का बड़ा गिफ़्ट पैक ज़रूर लाते। यह सब मुझे