क़ाज़ी वाजिद की कहानी- दू:स्वप्न जिस ओर भी मैं देखता, उस आदमी का चेहरा मेरी आंखों के सामने नज़र आता। गलियों और बाज़ारों में, मैंने सोचा, यह मेरा पीछा हर जगह कर रहा था। जब मैं आसपास से गुज़रने वालों को देखता, मैं उसी को खोजता- एक व्यक्ति जो छड़ी के सहारे चलता था, उसके घुटने पजामें से बाहर को निकले हुए थे, वह मैले कुचैले सफेद कपड़े पहने हुए था जिस पर ख़ून के सूख चुके धब्बे थे और उसकी पगड़ी उसकी गर्दन में गोल गोल लिपटी हुई थी। इस विचित्र भयोत्पादक आदमी ने कभी मेरा पीछा नहीं छोड़ा,