भाग 105 पूरे एक महीने तक परीक्षा चली महेश की। चिलचिलाती गर्मी में पसीने से तर -बतर वो किताबे खोले पढ़ाई में जुटा रहता। सभी पेपर अच्छे हुए। पूरी आशा थी कि वो बहुत अच्छे नंबरों से पास कर जायेगा। इधर महेश के जाने के बाद एक दो महीने तो पुरवा को बिल्कुल भी चिंता नही हुई कि वो घर नहीं आ रहा है। पर जब चार महीने बीत गए ना तो उसका एक भी खत नही आया और ना ही वो खुद ही आया। गुलाब रोज जब भी बाहर से आती ये पूछती कि बाबू की चिट्ठी आई क्या..?