तुमसा नहीं देखा..

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ये बात सन् १९८० की है,तब हम लोग उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के छोटे से कस्बे अतर्रा में रहा करते थे,मेरे पापा वहाँ के हिन्दू इण्टर काँलेज में अध्यापक थे,मैं उस समय बी.ए.पास करके एम.ए. में गया था और मेरा दोस्त पुरूषोत्तम पाण्डेय भी मेरे साथ ही बचपन से पढ़ा था,हमारी दोस्ती पूरे अतर्रा में मशहूर थी,हम दोनों एक दूसरे बिना कहीं ना जाते थे,फिर वो चाहे शादी हो या फिर किसी का श्राद्ध,हम पढ़ाई भी साथ साथ ही किया करते थे और हमारे अंक भी लगभग एक जैसे ही आया करते थे, हाँ बस कभी दोनों के अंक