दास्ता की ज़ंजीरे

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क़ाज़ी वाजिद की कहानी - प्रेमकथा जब सभी लोग चाय नाश्ता कर चुके, तो हमारे माता-पिता ने फुसफुसाकर आपस में कुछ बातें की, तभी रजनी शालीन वेशभूषा में कमरे में दाख़िल हुई‌ और वे मुझे अकेला छोड़कर बाहर चले गए। पापा ने जाते-जाते फुसफुसाकर मुझसे कहा,' चल आगे बढ़ और उससे बात कर।'...'अरे पापा, अगर मैं घर जमाई नहीं बनना चाहता, तो कैसे ज़बरदस्ती उससे यह कह सकता हूं कि मैं तुम्हें प्यार करता हूं।' 'यार! तुझे इससे क्या लेना-देना है। बेवकूफी मत कर। ज़रा दिमाग से काम ले।' यह कहकर मेरे पापा ने क़हर भरी नज़र मुझ पर डाली