बैसाख की रात का पिछला प्रहर। गुलाबी ठंड । गांव में उषा के आगमन तक बिछी चांदनी। इमरती दाल दरने बैठ गई। दरेती की आवाज़ से सुर मिलाते हुए गा उठी................ कुहू कुहू बोलइ ई कारी कोयलिया, पिउ पिउ रटैला पपिहरा हो राम । सर सर बहै ई गमकि पुरवइया, अंग अंग ठुनकै ई देहिया हो राम । लुहुर लुहुर लहकै तो करम कै फलवा, जिनगी उठइ निछरोरी हो राम । कब ए माई तू दिन बहुरइबौ हुलसै मना हर पौरी हो राम ।दिन निकलने के पूर्व ही धांधू भी उठ पड़ा। उसका यह नाम किसने रखा पता नहीं। आल्हा