हांटेड एक्सप्रेस - (भाग 06)

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मैं और मालती सूर्योदय के कमरे की ओर भागे....सूर्योदय फर्श पर बैठा हुआ था....उसके हावभाव देख कर हम दोनों ही सन्न रह गए.....सूर्योदय की आंखे खुली हुई थी,और वह बुत सा बना हुआ खिड़की की ओर निहार रहा था.....उसकी खुली आँखों से लगातार आंसू बहे जा रहे थे.....उसका चेहरे पर भय का समंदर छाया हुआ था....ऐसा लग रहा था कि मानो अभी अभी उसने कोई डरावनी भयंकर चीज देखी हो...जिसके सदमें से वह एकदम पत्थर हो गया हो......सूर्योदय को मैंने गोद मे उठा कर सामान्य करने की बहुत कोशिश की पर वह कुछ बताने की स्थिति में ही नही था,