हांटेड एक्सप्रेस - (भाग 04)

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मेरे ठीक बगल में वही अधेड़ महिला बैठी हुई थी,जो कुछ देर पहले विंडो सीट पर मौजूद थी......वह महिला सुबक सुबक कर रोते हुए अपने आंसुओ को साड़ी के आँचल से पोंछ रही थी...... मेरी स्थिति काटो तो खून नही वाली थी....क्योंकि इतना सब कुछ होने के बाद इतना तो मेरी समझ में आ ही चुका था कि यहां मौजूद प्रत्येक शख्स सामान्य इंसान न होकर एक छलावा है......और अब, जब वह मेरे ठीक बगल में आ बैठी थी तो ऐसे में मेरी घिग्घी बढ़ जाना लाजिमी था। पर कहते है न कि कोई भी डर एक सीमा तक होता