प्यार के जन्म हज़ार

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ऐसी मान्यता है कि जो आत्मा आकस्मिक अपूर्ण इच्छा के साथ शरीर का त्याग करती है वह अपने शुक्ष्म अलौकिक अस्तित्व में ब्रह्मांड में विचरण करती है और अपने जीवन अस्तित्व की अत्रितप्ता की तृप्तता हेतु युगों युगों विचरती है और जब कभी उसकी अतृप्त आत्मा को तृप्तता प्राप्त हो जाती हैं उससे मुक्त हो जाती है ।माना जाता है कि शरीर का त्याग विवशता या बेवस लाचारी की आत्मा जब करती है तो शरीर त्यागते समय उसके विचार भाव ही उसके शुक्ष्म शरीर आत्मा ब्रह्मांड में विचरण का मूल उद्देश्य बन जाता है जिसे किसी कभी वर्तमान का भूत