रेत की दीवारें

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आज भी मैं प्रातः सबसे पहले उठना चाह रही थी, किन्तु न जाने कैसे आँखें लगी रह गयी। अक्सर तो समय से उठ जाती हूँ। किन्तु आज न जाने कैसे देर हो गयी। हड़बड़ाई -सी मैं बाथरूम में चली गयी। वहाँ से आयी तो देखा साहिल अभी तक सो रहा था। मेरी दृष्टि सामने दीवार घड़ी की ओर स्वतः उठ गयी। साढ़े छः बजने वाले थे। मैं शीघ्रता से रसोई की ओर भागी। ’’ हम लोगों को उठे हुए घंटा भर हो गया। अभी तक चाय नसीब नही हुई है। ’’ ये स्वर लगभग आठ माह पूर्व मेरी सासू माँ