पहली बार इन्हें गाँव से शहर लाया । ये शहर देख कर आश्चर्य चकित थीं और मैं इनकी ख़ुशी को देख कर एकदम चित । मैं ढाल रहा था इन्हें जीवन शैली में और ये ढल रहीं थी बिना किसी आर्गुमेंट के । पर हाँ , सवाल तो थे ही , ये क्या , वो क्यूँ , ऐसा क्यूँ ... हमारे गाँव मे तो..! इनकी सारी दुनिया इनके गाँव की चकबंदी के अंदर ही सिमट गई थी । मेरी बातों को ध्यान से सुनती तब एक हाथ अपने गाल पर टिका कर बैठ जाती और मैं दोनों डिंपल्स में जाता