द्वितीय परिच्छेद *** सूरज का संसार उजड़ गया। दुनिया जल गयी। सपने नष्ट हो गये। वह तबाह-सा हो गया। किरण की बेरुखी देखकर वह बुरी तरह टूट भी गया। दिल में जैसे किसी ने तेज कटार घोंप दी थी- फाड़ दिया था। चिथड़े-चिथड़े कर दिया गया था, इस कदर कि उसको अब एक पल भी मथुरा में ठहरना मुश्किल हो गया। स्वत: ही यहां से नफरत हो गयी ! घृणा ! दिल की जब आरजू ही टूट गयी, तो उसको हर कोई दुष्ट नज़र आने लगा। ऐसी परिस्थिति में वह मथुरा में एक पल भी नहीं ठहरना चाहता था। जिस