मेरी ननिहाल में शाम गहराते ही पाँचों बच्चे मुझे आ घेरते, ’’तुमसे तुम्हारे दादा की कहानी सुनेंगे....’’ उनमें कुक्कू और हिरणी मुझसे बड़े थे। कुक्कू दो साल और हिरणी एक साल। टीपू मेरे बराबर का था और बाकी दोनों मुझसे छोटे। बच्चों के जमा होते ही मेरी दोनों मामियाँ भी मेरे पास आ बैठतीं। वे दोनों सगी बहनें थीं और एक-एक काम एक साथ किया करतीं। बैठते ही वे बच्चों को उकसाने लगतीं, ’’कहानी शुरू कराओ न! फिर तुम लोगों को सोना है।" लेकिन मैं रूका रहता। अपनी नानी के इंतजार में। इधर मुझे अकेले भेजते समय मेरी माँ अपनी