चिरयुवा बूटी - 4

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(4) ‘चोरी का माल मोरी मे’ सुबह मोहन नींद से जागा | हिमालय की वादियों में खिलती धूप को देखकर वह बड़ा प्रसन्न हुआ । चारों और लम्बे लम्बे देवदार के वृक्ष व नीचे बहती अलकनंदा नदी बड़ी ही मनोहारी लग रही थी । रात को बरसात होने से चारों ओर धरती गीली थी । मानवता के हित के लिए चुराए अपने बूटियों के खजाने को देखने मोहन पास के कमरे में गया । किन्तु यह क्या ! अपने बूटियों से भरे थैले को न देखकर वह स्तब्ध रह गया । उसने कमरे का एक एक कोना छान मारा किन्तु