उजाले की ओर –संस्मरण

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========== स्नेही मित्रो सुप्रभात हम स्वीकारते हैं कि कण-कण में प्रभु का वास है, कोई भी काम चाहे कितने ही पर्दों के पीछे कर लो, प्रभु की दृष्टि से कभी नहीं छिप सकता फिर भी हम आँख-मिचौनी खेलने से बाज़ नहीं आते | अपने साथ के लोगों से तो हम आँख-मिचौनी खेलते ही हैं, ईश्वर को भी धोखा देने से बाज़ नहीं आते | आरती करते हुए सेठ जी घंटियाँ बजा-बजाकर आरती तो करते हैं किन्तु क्रूर दृष्टि से उस गरीब को घूरना नहीं भूलते जिसे अभी-अभी उनका आदमी घसीटकर लाया है जो कई माह से सेठ से लिए गए