बच्चें मन के सच्चे... बचपन में याद है ….. अब इस तरह का आशीर्वाद कम ही मिलता है….. जब कोई रिश्तेदार व परिवार वाले हमारे घर आते थे तब फल व खिलौने लेकर आते थे और जब उनके वापस लौटने का वक्त होता था कुछ दिन हमारे घर पर रहने के बाद तब…. वापस लौटने के वक्त कुछ कुछ पैसे लिफ़ाफ़े में रख के या सीधे इसी तरह हमें देने लगते थे …. मन तो बहुत करता था ले लेने का लेकिन लेने से पहले नाटक ना लेने का भी हम बच्चें बहुत करते थे … फिर बाद में