गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 177

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जीवन सूत्र 551 जैसी करनी वैसी भरनीगीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है:- कर्मणः सुकृतस्याहुः सात्त्विकं निर्मलं फलम्।रजसस्तु फलं दुःखमज्ञानं तमसः फलम्।(14/16)।इसका अर्थ है:-सात्विक कर्म का फल सात्विक और पवित्र होता है। रजोगुण का फल दुःख और तमोगुण का फल अज्ञान होता है। मनुष्य अगर सात्विक कर्मों का आचरण करता है तो वह धैर्य और एकाग्र चित्त होकर किसी कार्य को करता है। ऐसा करते समय उसके मन में लोभ की भावना नहीं होती। वह परमात्मा के अभिमुख होता है। उसका मन निर्मल और शांत होता है। फलों की कामना से किए जाने वाले कर्म राजस कर्म होते हैं,जिनके