गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 176

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जीवन सूत्र 548 ईश्वर हैं कण-कण से ब्रह्मांड तक गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है:-अविभक्तं च भूतेषु विभक्तमिव च स्थितम्।भूतभर्तृ च तज्ज्ञेयं ग्रसिष्णु प्रभविष्णु च।(13/16)।ज्योतिषामपि तज्ज्योतिस्तमसः परमुच्यते।ज्ञानं ज्ञेयं ज्ञानगम्यं हृदि सर्वस्य विष्ठितम्।/(13/17)।इसका अर्थ है:- परमात्मा स्वयं विभाग रहित होते हुए भी सम्पूर्ण प्राणियोंमें विभक्त की तरह स्थित हैं। वे जाननेयोग्य परमात्मा ही सम्पूर्ण प्राणियोंको उत्पन्न करनेवाले, उनका भरण-पोषण करनेवाले और संहार करनेवाले हैं।जीवन सूत्र 549 सृष्टि के समस्त कार्यों में ईश्वर वे ज्योतियों की भी ज्योति और अज्ञान तथा अंधकार से परे हैं।वे ज्ञानस्वरूप, ज्ञेय( जिन्हें जाना जा सकता है) और ज्ञान के द्वारा जानने योग्य (ज्ञानगम्य) हैं।वे सभी