जीवन सूत्र 546 विचार सरिता ईश्वर हर कहीं हैं, बस उन्हें महसूस करने की भावना और दृष्टि चाहिएगीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है:-बहिरन्तश्च भूतानामचरं चरमेव च।सूक्ष्मत्वात्तदविज्ञेयं दूरस्थं चान्तिके च तत्।(13/15)।इसका अर्थ है -परमात्मा चराचर सब भूतों के बाहर भीतर परिपूर्ण है और अचर-अचर भी वही है। वह सूक्ष्म होने से अविज्ञेय है तथा अति समीप में और दूर में भी स्थित वही है। गीता में अविज्ञेय शब्द का अर्थ स्पष्ट किया गया है। जैसे सूर्य की किरणों में स्थित हुआ जल सूक्ष्म होने से साधारण मनुष्यों के जानने में नहीं आता है। जीवन सूत्र 547 ईश्वर का विशिष्ट