गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 174

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जीवन सूत्र 541 भक्ति प्रलोभनों से डगमग ना होगीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है:-मयि चानन्ययोगेन भक्तिरव्यभिचारिणी।विविक्तदेशसेवित्वमरतिर्जनसंसदि। 13/10अध्यात्मज्ञाननित्यत्वं तत्त्वज्ञानार्थदर्शनम्।एतज्ज्ञानमिति प्रोक्तमज्ञानं यदतोन्यथा।(13/11)।इसका अर्थ है:- ज्ञान के विषय में बताते हुए भगवान कृष्ण अर्जुन से आगे कहते हैं कि परमेश्वर में अनन्य योग के द्वारा अव्यभिचारिणी भक्ति का होना,एकान्त स्थान में रहने का स्वभाव होना और जन-समुदाय में प्रीति का न होना।अध्यात्मज्ञानमें नित्य-निरन्तर रहना, तत्त्वज्ञान के अर्थरूप परमात्मा को सब जगह देखना,ये सब ज्ञान है; और जो इसके विपरीत है वह अज्ञान है, ऐसा कहा गया है। वास्तव में अव्यभिचारिणी भक्ति का मतलब है,निश्चल भक्ति जो डगमगाए ना,डांवाडोल न हो।जीवन सूत्र 542