जीवन सूत्र 521 मन की एकाग्रता के अभ्यास से ही होगा भावी पथ प्रशस्तगीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है:-अथ चित्तं समाधातुं न शक्नोषि मयि स्थिरम्।अभ्यासयोगेन ततो मामिच्छाप्तुं धनञ्जय।(12/9)।इसका अर्थ है:- यदि तू मन को मुझ में अचल स्थापन करने के लिए समर्थ नहीं है तो हे अर्जुन, अभ्यास रूपी योग के द्वारा मुझको प्राप्त होने के लिए इच्छा कर। गीता में ईश्वर प्राप्ति के लिए ईश्वर के नाम और गुणों के श्रवण-कीर्तन,पठन-पाठन,श्वांस के द्वारा जप आदि को अभ्यास बताया गया है, जिससे ईश्वर की प्राप्ति होगी। भगवान कृष्ण की इस दिव्य वाणी से हम अभ्यास शब्द को एक सूत्र