गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 160

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जीवन सूत्र 486 प्रेम गली अति सांकरीअसंयतात्मना योगो दुष्प्राप इति मे मतिः।वश्यात्मना तु यतता शक्योऽवाप्तुमुपायतः।(6/36)।इसका अर्थ है, भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि जिसका मन पूरी तरह वश में नहीं है,उसके द्वारा योग प्राप्त होना कठिन है।वहीं मन को वश में रखकर प्रयत्न करनेवाले से योग सम्भव है,ऐसा मेरा मानना है। भगवान कृष्ण की इस दिव्य वाणी से हम योग के लिए मन को वश में करने की अपरिहार्यता को एक सूत्र के रूप में लेते हैं। वास्तव में कुछ प्राप्त करने के लिए परिश्रम तो करना ही होता है और बात जहां योग को प्राप्त करने की हो