गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 156

  • 2.1k
  • 858

जीवन सूत्र 466 ईश्वर कृपा हेतु आवश्यक है उदार दृष्टिगीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है: यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति।(6/30)।इसका अर्थ है:- हे अर्जुन,जो सबमें मुझे देखता है और सबको मुझमें देखता है, उसके लिये मैं अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिये अदृश्य नहीं होता।सब जगह अपने स्वरूपको देखने वाला योग से युक्त आत्मा वाला और ध्यान योगसे युक्त अन्तःकरण वाला योगी अपने स्वरूप को सम्पूर्ण प्राणियों में स्थित देखता है।साथ ही वह सम्पूर्ण प्राणियोंको अपने स्वरूप में देखता है। एक उदारवादी पांडव राजकुमार होने के बाद भी