गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 152

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जीवन सूत्र 446 योग को बना लें अपनी जीवनशैलीभगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है:-तं विद्याद् दुःखसंयोगवियोगं योगसंज्ञितम्।स निश्चयेन योक्तव्यो योगोऽनिर्विण्णचेतसा।(6/23)।इसका अर्थ है:-जिसमें दुःखों के संयोग का ही वियोग है तथा जिसका नाम योग है,उसको जानना चाहिए।यह योग न उकताए हुए अर्थात धैर्य और उत्साहयुक्त चित्त से निश्चयपूर्वक करना चाहिए। भगवान कृष्ण की इस दिव्य वाणी से हम योग के महत्व और इसे निश्चयपूर्वक करने की आवश्यकता को एक सूत्र के रूप में लेते हैं।जीवन सूत्र 447 आधुनिक समस्याओं का हल योग मेंआज जब मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता, इम्यूनिटी आदि को बढ़ाने की बातें होती हैं,तो स्वस्थ रहने