गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 150

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जीवन सूत्र 436 चित्त की स्थिरता योगी की पहचानगीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है:-यदा विनियतं चित्तमात्मन्येवावतिष्ठते।निःस्पृहः सर्वकामेभ्यो युक्त इत्युच्यते तदा।(6/18)।इसका अर्थ है अत्यंत वश में (अभ्यास द्वारा) किया हुआ चित्त जिस काल में परमात्मा में ही पूरी तरह स्थित हो जाता है,उस काल में संपूर्ण भोगों से स्पृहा रहित पुरुष योगयुक्त है,ऐसा कहा जाता है। वास्तव में योग का अर्थ केवल कुछ आसनों के अभ्यास और प्राणायाम की यौगिक क्रियाओं को संपन्न कर लेने से नहीं है।जीवन सूत्र 437 योग का अर्थ परमात्मा से जोड़ना इसका अंततः उद्देश्य तो परम पिता परमेश्वर से आत्मा को जोड़ने से है। इससे