जीवन सूत्र 431 स्थितप्रज्ञ के संतुलन बिंदु की खोज स्वयं को करनी हैगीता में श्रीकृष्ण ने कहा है:-नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नतः।न चातिस्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन।(6/16)।इसका अर्थ है-हे अर्जुन! यह योग न तो बहुत खाने वाले का, न बिलकुल न खाने वाले का, न बहुत शयन करने के स्वभाव वाले का और न सदा जागने वाले का ही सिद्ध होता है। भगवान कृष्ण इस श्लोक में समत्व की स्थिति पर जोर दे रहे हैं।अगर दूसरे शब्दों में कहा जाए तो अति किसी भी चीज की अच्छी नहीं है। लेकिन व्यावहारिक धरातल पर प्रश्न यह है कि आखिर किस सीमा तक किसी