गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 137

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जीवन सूत्र 376 भीतर के सुख की खोज (21 वें श्लोक से आगे का वार्तालाप) बाह्य सुखों में आसक्ति का निषेध कर उसे अंतः सुख की ओर मोड़ने की चर्चा करने के बाद भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से उन सुखों का विश्लेषण प्रारंभ करते हैं जो वास्तव में आनंद के नहीं बल्कि भोग के स्रोत हैं:-ये हि संस्पर्शजा भोगा दुःखयोनय एव ते।आद्यन्तवन्तः कौन्तेय न तेषु रमते बुधः।।5/22।।इसका अर्थ है,क्योंकि हे कुंतीनंदन !जो इन्द्रियों और विषयोंके संयोग से पैदा होनेवाले भोग (सुख) हैं, वे आदि-अंत वाले और दुःख के ही कारण हैं। अतः बुद्धिमान मनुष्य उनमें लिप्त नहीं होता।जीवन सूत्र 377