गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 134

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जीवन सूत्र 361 परमात्मा में स्थिरता का अभ्यासभगवान श्री कृष्ण ने गीता में अर्जुन से कहा है: -इहैव तैर्जितः सर्गो येषां साम्ये स्थितं मनः।निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद्ब्रह्मणि ते स्थिताः।।5/19।।इसका अर्थ है,जिनका अन्तःकरण समता में स्थित है,उन्होंने इस जीवन में सम्पूर्ण सृष्टि को जीत लिया है;परमात्मा निर्दोष और सम है, इसलिए वे परमात्मा में ही स्थित हैं। भगवान कृष्ण ने इस श्लोक में समत्वभाव पर बल दिया है।इस भाव की पहली कसौटी समदर्शी होने में है,जहां इस संसार में जिन-जिन लोगों से हमारा सामना होता है,उन सब के प्रति हम बिना पूर्वाग्रह के समान व्यवहार कर सकें।जीवन सूत्र 362 अकारण