कुछ देर बाद जमनादास और वकील धर्मदास दरोगा विजय के सामने कुर्सी पर बैठे हुए थे। उन्हें देखते हुए विजय चेहरे पर हैरानी के भाव लिए हुए बीच बीच में सामने की मेज पर पड़े हुए कागज पर भी निगाह फेर लेता। कुछ देर बाद उठकर दरवाजे से बाहर पान की पिक थूककर वह पुनः अपनी कुर्सी पर आसीन हुआ और धर्मदास जी से बोला, " मान गए श्रीमान आपको ! आप अवश्य यह मुकदमा जीत जाएँगे और अत्याचार की शिकार बसंती की आत्मा को अब इंसाफ दिलाने से कोई नहीं रोक सकता।" धर्मदास मंद मंद मुस्कुराते हुए बोला, "