जीवन सूत्र 336 कर्म का त्याग करें तो चिंतन भी ना करेंभगवान श्री कृष्ण ने गीता में अर्जुन से कहा है: -युक्तः कर्मफलं त्यक्त्वा शान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम्।अयुक्तः कामकारेण फले सक्तो निबध्यते।।5/12।।इसका अर्थ है,कर्मयोगी कर्मफलका त्याग करके ईश्वर से योग रूपी शान्ति को प्राप्त होता है।कामनाओं की इच्छा से काम करने वाला मनुष्य फल में आसक्त होकर बँध जाता है। कर्म करने वाले दो तरह के होते हैं।एक ओर कर्मयोगी होता है, जो कर्मों के फल की प्राप्ति की भावना का त्याग करते हुए कार्य करता है। वह न केवल भोग के साधनों का त्याग करता है,बल्कि उसके मन में भी उस