जीवन सूत्र 316 शुद्ध अंतःकरण के साथ अन्य से एकात्म का करें अनुभवगीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा है: -योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रियः।सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते।।5/7।। इसका अर्थ है, हे अर्जुन!जिसकी इन्द्रियाँ उसके वशमें हैं,जिसका अन्तःकरण शुद्ध है,और जो सभी प्राणियों की आत्मा के साथ एकात्म का अनुभव करता है,ऐसा कर्मयोगी कर्म करते हुए भी उनसे लिप्त नहीं होता। इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने कर्म करते हुए भी उनसे लिप्त नहीं होने की बात की है। प्रथम दृष्टया तो यह अत्यंत कठिन स्थिति है।हम काम भी करें और उस में लिप्त न रहें।ऐसे में यह