जीवन सूत्र 296 राग द्वेष से परे रहना आवश्यक गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा है: -ज्ञेयः स नित्यसंन्यासी यो न द्वेष्टि न काङ्क्षति।निर्द्वन्द्वो हि महाबाहो सुखं बन्धात्प्रमुच्यते।।5/3।।इसका अर्थ है,हे महाबाहो !जो पुरुष न किसी से द्वेष करता है और न किसी की आकांक्षा,वह सदा संन्यासी ही समझने योग्य है; क्योंकि, द्वन्द्वों से रहित व्यक्ति सहज ही सुखपूर्वक संसार के बंधनों से मुक्त हो जाता है। भारतीय ज्ञान और दर्शन परंपरा में संन्यास को एक अत्यंत कठिन साधना माना जाता है। मनुष्य इस साधना पथ का अनुसरण करने के लिए गृह त्याग करता है। गुरु के पास