जीवन सूत्र 281 कर्मों के संतुलन में योग सहायक गीता में भगवान श्री कृष्ण ने वीर योद्धा अर्जुन से कहा है -योगसंन्यस्तकर्माणं ज्ञानसंछिन्नसंशयम्।आत्मवन्तं न कर्माणि निबध्नन्ति धनञ्जय।।4/41।।इसका अर्थ है,हे धनञ्जय !योग के संतुलन के द्वारा जिसका सम्पूर्ण कर्मों से सम्बन्ध-विच्छेद हो गया है और ज्ञान के द्वारा जिसके सारे संशयों का नाश हो गया है,ऐसे आत्मवान् पुरुष को कर्म नहीं बाँधते।जीवन सूत्र 282 कर्म करते रहें,आगे अनायास कर्म होने लगेंगे अपने कार्यों को करते हुए एक ऐसी समता की स्थिति निर्मित होती है,जहां कर्म अनायास होने लगते हैं।जब कर्मों को लेकर किसी तरह के दबाव और तनाव का अनुभव नहीं