जीवन सूत्र 231 योगी आत्म संयम योग की अग्नि में कार्यों को शुद्ध करता है गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा है -सर्वाणीन्द्रियकर्माणि प्राणकर्माणि चापरे।आत्मसंयमयोगाग्नौ जुह्वति ज्ञानदीपिते।।4/27।।इसका अर्थ है,हे अर्जुन!अन्य योगीजन सम्पूर्ण इन्द्रियों के तथा प्राणों के कर्मों को ज्ञान से प्रकाशित आत्मसंयम योग की अग्नि में हवन करते हैं। जिस तरह अग्नि को समर्पित कर देने से चीजें शुद्ध पवित्र हो जाती हैं।उसके दोष दूर हो जाते हैं। उसी तरह योगी अपने संपूर्ण कार्यों को चाहे वह विभिन्न ज्ञानेंद्रियों से संपन्न हो रहा हो या कर्मेंद्रियों से,इन सबको आत्म संयम रूपी यज्ञ की सहायता से योग