गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 98

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जीवन सूत्र 191 नित्य कर्म शरीर ही नहीं आत्म शुद्धि हेतु भी आवश्यकगीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा है:-कर्मणो ह्यपि बोद्धव्यं बोद्धव्यं च विकर्मणः।अकर्मणश्च बोद्धव्यं गहना कर्मणो गतिः।।4/17।।इसका अर्थ है कि कर्म का स्वरूप जानना चाहिए और विकर्म का स्वरूप भी जानना चाहिए तथा अकर्म का भी स्वरूप जानना चाहिए क्योंकि कर्म की गति अत्यंत गूढ़ और गहन है। कर्म जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। ग्रंथों के अनुसार मुख्य रूप से कर्मों को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-नित्य कर्म,नैमित्तिक कर्म और काम्य कर्म।प्रातः काल से लेकर दिनभर और फिर रात्रि व्यतीत होने के