जीवन सूत्र 186 निश्चित लक्ष्य के साथ किए जाने वाले कार्य ' कर्म 'गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है -किं कर्म किमकर्मेति कवयोऽप्यत्र मोहिताः।तत्ते कर्म प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्।।4/16।।इसका अर्थ है,(हे अर्जुन!)कर्म क्या है और अकर्म क्या है,इस पर विचार कर निर्णय लेने में बुद्धिमान मनुष्य भी मोहित हो जाते हैं।अतः वह कर्म-तत्त्व मैं तुम्हें भलीभाँति कहूँगा,जिसको जानकर तू अशुभ(अर्थात इस संसार के कर्म बन्धन)से मुक्त हो जाएगा। इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण ने कर्मों को संपन्न करने के समय आने वाली व्यावहारिक कठिनाइयों पर चर्चा की है। जीवन सूत्र 187 बिना आसक्ति और फल की कामना के किए