कालवाची ने मत्स्यगन्धा की ग्रीवा को अत्यधिक दृढ़तापूर्वक पकड़ रखा था,मत्स्यगन्धा बोलने का प्रयास कर रही थी किन्तु वो चाह कर भी बोल नहीं पा रही थीं,वो निरन्तर ही स्वयं की ग्रीवा कालवाची के हाथ से छुड़ाने का प्रयास करती रही ,किन्तु सफल ना हो सकी.... कालवाची मत्स्यगन्धा की ग्रीवा पकड़े हुए यूँ ही पवन वेग से उड़कर शीशमहल के प्राँगण की वाटिका में जा पहुँची,कालवाची का बीभत्स रूप एवं अँधियारी रात्रि,आज तो मत्स्यगन्धा के प्राण जाने निश्चित थे,जब मत्स्यगन्धा की दशा अत्यधिक दयनीय हो गई एवं कालवाची को पूर्ण विश्वास हो गया कि वो अपनी सहायता हेतु किसी को