गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 78

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जीवन सूत्र 107-108 भाग 77जीवन सूत्र 107: मन और बुद्धि में हो तालमेलगीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है-इन्द्रियाणि मनो बुद्धिरस्याधिष्ठानमुच्यते।एतैर्विमोहयत्येष ज्ञानमावृत्य देहिनम्।।3/40।।इसका अर्थ है, हे अर्जुन!इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि इस काम के वास-स्थान कहे गए हैं।यह काम इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि के द्वारा ही ज्ञान को ढककर मनुष्य को मोहित करता है। भगवान कृष्ण की इस दिव्य वाणी से हम काम के निवास स्थान और उनकी उत्प्रेरक भूमिका के संकेत को एक सूत्र के रूप में लेते हैं। वास्तव में मनुष्य की तीव्र कामनाएं इंद्रियां, मन और बुद्धि से संबंधित हैं। इन्हें कामनाओं का निवास स्थान भी कहा गया