मंगलसूत्र - 2

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मूल लेखक - मुंशी प्रेमचंदशैव्या ने पूछा - संतू कहाँ रह गया? चाय ठंडी हो जाएगी तो कहेगा यह तो पानी है। बुला ले तो साधु; इसे जैसे खाने-पीने की भी छुट्टी नहीं मिलती।साधु सिर झुका कर रह गया। संतकुमार से बोलते उनकी जान निकलती थी।शैव्या ने एक क्षण बाद फिर कहा - उसे भी क्यों नहीं बुला लेता?साधु ने दबी जबान से कहा - नहीं, बिगड़ जाएँगे सवेरे-सवेरे तो मेरा सारा दिन खराब हो जाएगा।इतने में संत कुमार भी आ गया। शक्ल-सूरत में छोटे भाई से मिलता-जुलता, केवल शरीर का गठन उतना अच्छा न था। हाँ, मुख पर तेज