43--- =============== ‘जगन था तो एक मुसीबत थी और अब नहीं रहा तब भी मुसीबत लग रहा है’यह मेरे मन में हलचल मचा रहा था | इससे हमारे परिवार का तो काफ़ी नुकसान हुआ ही था न ! मैं यह क्यों नहीं समझ पा रही थी कि परिस्थितियों व घटनाओं पर हमारा अधिकार नहीं होता है, वे तो बस घट जाती हैं | हमें उन्हें घटते हुए देखना होता है और उनके साथ चलना होता है | मेरा उपद्रवी मन यह मानने के लिए तैयार ही नहीं था कि हम चाहें भी तो भी कुछ नहीं कर सकते | मैं