बरसाती बादलों के उमड़ आते ही पुरानी छोटे अक्सर सालती हैं । उनमें दर्द उभरता है , कुछ याद दिलाता है कि बचपन में लड़कपन में जो बार-बार पेड़ की डाल से कूदते थे , दीवार फान्दते जब अमिया चुराते और अचानक ही ठाकुर दादा के गुर्गे वहां आकर हमारे को पकड़ने दौड़ते थे । जब पकड़े जाते थे तो कान मरोड़े जाते थे, कान मरोड़ने के डर से हम उसी दीवार को फान्दते थे । कई बार चोट लगती थी तो कई बार बचकर भाग निकलते थे । ठाकुर के गुर्गे जिस किसी को पहचान लेते थे उसी के घर जाकर