मुजाहिदा - ह़क की जंग - भाग 6

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भाग6बीता हुआ एक-एक लम्हा, किसी खौफ़नाक मंजर के माफिक उसके सामने से गुजरने लगा। आँखों को अश्कों से डुबोती हुई फिज़ा बैड पर बैठी हुई सिसक पड़ी। अब तो उसका काम बात- बात पर सिसकना ही रह गया था। ये वक्त की नज़ाकत थी कि दिलासा जैसे लब्ज़ अन्दर जाते ही नही थे। जो तस्वीरें उसके आस-पास उभरतीं उनमें आरिज़ का चेहरा सबसे ऊपर रहता था। उसके दिल में आरिज़ के लिये ये नफरत थी या चाहत इसका सही-सही अन्दाजा लगाना तो मुश्किल था, मगर ये तय था कि ये चाहत तो हरगिज नही हो सकती। चाहने के लिये एक