कुशाग्रसेन के मुँख पर चिन्ता के भाव देखकर सेनापति व्योमकेश बोले.... महाराज!ऐसे चिन्तित होने से कुछ नहीं होने वाला,अब तो उस हत्यारे को बंदी बनाना अनिवार्य हो गया है,हम ऐसे हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठ सकते.... सेनापति व्योमकेश आप इतने उत्तेजित क्यों हो रहे हैं?क्या उस हत्यारे को बंदी बनाना इतना कठिन है,राजनर्तकी मत्स्यगन्धा ने पूछा.... राजनर्तकी मत्स्यगन्धा आप यहाँ कैसें?सेनापति व्योमकेश ने पूछा..... जी!मैं तो कालिन्दी के विषय में महाराज से वार्ता करने आई थी,किन्तु यहाँ आकर देखती हूँ कि महाराज तो किसी और ही समस्या से घिरे हुए,मैने उन्हें एक और समस्या बता दी....मत्स्यगन्धा बोली... ओह....महाराज के