पति का आरक्षण

  • 1.8k
  • 756

आज अचानक ही रोहन की नजर अखबार के साहित्य पन्ने पर पड़ी और अपने मित्र लेखक कवि की एक कविता पर कविता की पंक्तियां थी  अपने इरादों को सुरों की झंकार दो  उठो बस तुम गांडीव को टंकार  हो अजय तुम बस उठो पार्थ बनो  दुश्मन सामने है सिंह हुंकार दो  तेरे कांधों पर है अब यह बोझ सारा  शेषनाग सा ले धरती को वार दो  तुझे धरा पुकारती ओ सुत भारती  अपने हाथों से हरा श्रृंगार दो  किसी रोते हुए नन्हे बच्चे को  बस नन्ही सी थपकी से बस तुम पुचकार दो ।   अपने भीतर के दर्द को