जुगाड़

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अमन कुमार त्यागी गुणनो न विदेशोऽस्ति न संतुष्टस्य चा सुखम्। धीरस्य च विपन्नास्ति नासाध्यं व्यवसायिनः।। -‘बच्चों! संस्कृत के इस श्लोक का अर्थ यह है कि गुणी मनुष्य के लिए कहीं विदेश नहीं, धीर व्यक्ति के लिए विपत्ति नहीं और पुरुषार्थी के लिए कुछ भी असाध्य नहीं।’ मोहन बाबू अपने सामने बैठे बच्चों को समझा ही रहे थे कि तभी वहाँ रामेश्वर प्रसाद पहुँच गए और उन्होंने ताना देते हुए कहा- क्या उपदेश दे रहे हो मोहन बाबू! आज ज़िंदगी उपदेशों और सि(ांतों से नहीं बल्कि जुगाड़ से चलती है। मैं एक महीने में इतना कमा लेता हूँ, जितना कि तुमने