एक दुआ - 5

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5 “ओहह !” आज घर पर फिर से डांट पड़ेगी, पैदल जाने में और बीस मिनट निकल जायेंगे, यहाँ से कोई रिक्शा और ऑटो भी नहीं चलता है ! क्या करूँ ? फोन करके किसी को बुला लूँ लेकिन फोन करने से भी कोई फायदा नहीं होगा ! वही जवाब मिलेगा अब तुम खुद ही आ जाओ, या जैसे मन करे वैसे अभी समय भी क्या हुआ है ? हे भगवन, इस नाटक ने तो जैसे जान ही ले ली है यहाँ पर मैम और घर पर भैया ! क्या करूँ ? हर बार मना कर देती हूँ, नहीं करना